शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

माधुर्य

स्वामी विद्यानंद जी 'विदेह'

मधुमन्म निक्रमणं मधुमन्मे परायणम्।
वाचा वदामि मधुमद् भूयासं मधुसंदृशः।।

अथर्ववेद १.३४.३

क्रोध, कटुता, रूक्षता, उद्विग्नता स्वभाव-सम्बन्धी भयंकर दोष हैं। इनसे नितराम् चित्त में विक्षोभ, मन में अशान्ति, बुद्धि में असन्तुलन और इन्द्रियों में चंचलता का प्रस्फुटन होतर रहता है जिससे मनुष्य का समाहितचित्त, शान्तमन, समबुद्धि और स्थिरेन्द्रिय होना कठिन ही नहीं, सर्वथा असम्भव होता है। इन स्वभावदोषों के निवारण के लिए मधुरता का अभ्यास कीजिए। मधुरता के अभ्यास के लिए उपर्युक्त मन्त्र को शब्दार्थसहित कण्ठस्थ करके, उसका सदा सर्वदा गान कीजिए। (मे) मेरा (नि-क्रमणम्) निकट आना, मिलना (मधुमत्) मधुयुक्त, मधुर हो। (मे) मेरा (परा-अयनम्) प्रत्यागमन, बिछुड़ना, वियुक्त होना (मधु-मत्) मधुर हो। मैं (वाचा) वाणी से (मधुमत्) मधुर (वदामि) बोलूं। मैं (मधु-सम्-दृशः) मधु-सदृश, मधु सं-दृष्टि (भूयासम्) हो जाऊं।
जो जिस पदार्थ का सार होता है उसमें उस पदार्थ के गुण होते हैं। मधु नाम शहद का है। मधु पुष्पों का सार होता है। मधु में पुष्पों की स्निग्धता, मधुरता, सुगन्धि, सोम्यता, सुन्दरता, प्रसन्नता सन्निहित है। अतः मधुसेवी बनिए। मधु के समान सारग्राही, स्निग्ध, मधुर, सुगन्धित, सोम्य बनिए। मधुरता को अपनी प्रकृति बना लीजिए। सर्वथा मधुर स्वभाव हो जाइए। अपना ऐसा शील बनाइए, कि क्रुद्ध और अशान्त मनुष्य अथवा प्राणी आपसे मिलकर सहसा मधुर और शान्त हो जाए। जब कोई व्यक्ति आपसे वियुक्त {विदा} हो तो वह माधुर्य और स्नेह के साथ वियुक्त हो। आपका मिलना और बिछुड़ना माधुर्योपेत तभी होगा जब आपकी वाणी मधुर होगी। वाणी में माधुर्य तभी होगा जब आप मधुहृदय होंगे, साक्षात् माधुर्य हो जाएंगे, अन्दर-बाहर से साक्षात् मधु बन जाएंगे, और सब आपकी दृष्टि मधुदृष्टि बन जाएगी।

मधुरस्वभाव, मधुहृदय, मधुजिह्व व्यक्ति सदा शीतल, शान्त, सुखी, प्रसन्न, आनन्दित, प्रीतिमान्, सर्वप्रिय, समाहित, सन्तुलित, संयत, निश्चल और सन्तुष्ट रहता हुआ प्रत्येक क्षेत्र में विजयसाफल्य प्राप्त करता है। मधुर, शान्त आत्मा विकट से विकट परिस्थितियों को मुस्कराहट के साथ परास्त करता हुआ, जटिल से जटिल समस्याओं को सहजतया सुलझा लेता है।

मधुरता की भावना से सदा माधुर्योपेत रहिए। विचारों में मधुरता हो, दृष्टि में मधुरता हो, वाणी में मधुरता हो, हृदय में मधुरता हो, मन में मधुरता हो, चित्त में मधुरता हो। आप मधुर हो जाएंगे तो संसार में आपको सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य अनुभव होगा। माधुर्य से ही ब्रह्ममाधुर्य की अनुभूति होगी।



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