गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

पाप का घड़ा एक न एक दिन भरता अवश्य है

राम और श्याम दो मित्र थे। दोनों ने दूध बेचने का व्यापार प्रारम्भ किया। राम स्वभाव से ईमानदार, शान्तिप्रिय, सज्जन व्यवहार का था जबकि श्याम कुटिल, लालची एव क्रूर स्वभाव का था। राम ने सदा ईमानदारी से दूध बेचा और कभी मिलावट नहीं की। जबकि श्याम पानी मिलाकर दूध बेचता रहा। धीरे-धीरे श्याम धनी बनता गया और राम निर्धन का निर्धन बना रहा। धीरे-धीर राम के मन में एक विचार बार-बार घर करने लगा कि क्या व्यक्ति को अधर्म से ही सुख मिलता है ? राम के मन में यह विचार उठ ही रहा था कि एक साधु उनके गाँव में पधारे। राम ने उनके समीप जाकर कहा-महात्मा जी मनुष्य धर्म से फलता है अथवा अधर्म से। महात्मा जी मुस्कुराए एवं राम को अगले दिन इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आने को कहा। राम जब अगले दिन उनके समीप पहुँचा तो उसने देखा कि महात्मा जी के यहाँ पर धरती में आठ फुट गहरा गढ़ा खुदा हुआ है। महात्मा जी ने राम को उस गढ़े में खडे़ होने को कहा। अब उस गढ़े में जल डाला जाने लगा। जब जल राम के पैरों तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पूछा कोई कष्ट। राम ने उत्तर दिया नहीं कोई कष्ट नहीं है। जब जल राम की कमर तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पुनः पूछा कोई कष्ट ? राम ने कहा नहीं। जब जल राम के सिर तक पहुँच गया तो महात्मा जी ने पूछा कोई कष्ट ? राम ने उत्तर दिया महात्मा जी बाहर निकालिए नहीं तो प्राणों पर बन आयेगी। महात्मा जी ने राम को बाहर निकाला और पूछा अपने प्रश्न का उत्तर समझे ? राम ने कहा नहीं समझा। महात्मा जी ने कहा-’’जब पानी आपके पैरों, कमर, गर्दन तक पहुँचा तब आपको कष्ट नहीं हुआ और जैसे ही सिर तक पहुँचा आपके प्राण निकलने लगे। इसी प्रकार से पापी व्यक्ति के पाप जब एक सीमा तक बढ़ते जाते हैं तब एक समय ऐसा आता है कि उसके फल से उसका बच निकलना संभव नहीं होता और वह निश्चित रूप से अपने पापों का फल भोगता है। मगर पापों का फल मिलना निश्चित है।’’ 
अन्यायोपार्जितं द्रव्यं दशवर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्त एकादशे वर्षे समूलं च विनश्यति।।

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