शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

आचरण का सहारा

आचार्य सत्यजित् जी

आध्यात्मिक चिन्तन के क्षण......

प्रभु का सहारा सदा हमारे साथ है। परिजनों, इष्ट-मित्रों का सहारा भी हमें प्राप्त होता रहता है। सहारा देने वालों से सदा सबकोे सहारा नहीं मिल पाता है। परिजन, इष्ट-मित्र भी बेसहारा छोड़ जाते हैं। तब केवल प्रभु का सहारा दिखाई पड़ता है। तब प्रभु के सहारे को स्मरण कर धैर्य रखा जाता है। इतना होने पर भी मन में संदेह होता रहता है, क्योंकि जितना सहारा व सहयोग हम चाहते हैं वह हमें नहीं मिल पाता। परिजन, इष्ट-मित्र तो अल्पज्ञ अल्पशक्तिमन् आत्माएं हैं, प्रायः स्वार्थ पूरा न होते देख बेसहारा छोड़कर चले जाते हैं। किन्तु प्रभु तो सर्वज्ञ हैं, सर्वशक्तिमान् हैं, उनके रहते भी सहारे व सहयोग का न मिल पाना संशय उत्पन्न कर देता है।

प्रभु का सहारा हो या परिजनों का, यह प्रायः तभी पर्याप्त मिलता है जब हमारा आचरण-व्यवहार अच्छा हो। परिजनों-इष्ट मित्रों का सहारा तब अच्छा मिलता है, जब हम उनके लिए उपयोगी हों, हम उनका उपकार करते हों, हम उनके सहयोगी बनते हो, या हमारा आचरण-व्यवहार बहुत अच्छा हो। इनके अभाव में हम धीरे-धीरे बेसहारा होते जाते है। अपवाद रूप में कभी-कभी अच्छे आचरण-व्यवहार वालों को भी अन्यों का सहारा नहीं मिल पाता है। दुष्टों-अधार्मिकों का स्वार्थ अच्छे आचरण वाले से पूरा नहीं होता, अच्छे आचरण वाला उन्हें सहयोग नहीं करता, अतः वे भी अच्छे आचरण वाले का सहयोग नहीं करते। लौकिक सहारे परस्पर सहयोग पर निर्भर करते हैं।

प्रभु का सहारा परस्पर सहयोग के बिना निःस्वार्थ भाव से चलता है। प्रभु को हमसे किसी सहारे की आवश्यकता नहीं है। वे तो सर्वशक्तिमान्, सर्वसमर्थ, पूर्णकाम हैं। पर हमें तो उनके सहारे की आवश्यकता है। उसके बिना हम पूर्णतः असमर्थ-पंगु हैं। प्रभु का सहारा भी निरपेक्ष नहीं है। प्रभु सब को समान सहारा नहीं देते। हम कैसे भी अच्छे-बुरे हों, हम कैसे भी अच्छे-बुरे कर्म करें और प्रभु सदा पूरा सहारा देते रहें, ऐसा नहीं होता। प्रभु भी हमारे से अपेक्षा रखते हैं। प्रभु सबको सहारा दे सकते हैं, देने को उद्यत हैं, देते रहते हैं, किन्तु वे न्यायकारी भी हैं, अतः यथायोग्य सहारा देते हैं। प्रभु का सहारा हमारे आचरण पर निर्भर करता है। प्रभु अच्छों को सदैव अच्छा सहारा देते हैं। भले ही कभी संसार का सहारा अच्छों को न मिले, पर प्रभु का सहारा अच्छों को सदा मिलता रहता है।

संसार का सहारा अच्छे व बुरे दोनों प्रकार के मनुष्यों से छूट सकता है। ऐसे में अच्छे-बुरे दोनों प्रकार के मनुष्य प्रभु के सहारे को पकड़ते हैं, मन में उसके सहारे की कामना करते हैं, उसके सहारे की आशा रखते हैं। किन्तु ऐसे में भी प्रभु का सहारा सबको नहीं मिलता। प्रभु अच्छों को ही सहारा देते हैं। बुरे तो प्रभु के यहां भी बेसहारा होते हैं। अच्छों को प्रभु का सहारा मिलने का विश्वास रहता है, अतः संसार का सहारा न मिलने पर भी वे शान्त-संतुष्ट रह लेते है। बुरों को प्रभु का सहारा नहीं मिलता, उन्हें भी मन में सन्देह रहता है, अतः वे येन-केन प्रकारेण संसार का ही सहारा पाने में लग जाते हैं। वे जैसे-तैसे सांसारिक सहारा पा भी लेते हैं, पर इस प्रक्रिया में बुरा आचरण करते रहने से प्रभु के सहारे से और अधिक दूर होते जाते हैं।

प्रभु का सहारा हो या सांसारिक सहारा, सर्वत्र मूल में हमारा अपना आचरण आधार बनता है। हमारा आचरण अच्छा हो तो सांसारिक सहारा भी पर्याप्त मिल ही जाता है, प्रभु का सहारा तो बरस-बरस पड़ता है। जब हम आचरण का सहारा लेते हैं, तो सारे सहारे सहज मिलते रहते हैं। आचरण का सहारा छोड़ जब हम अन्यों का सहारा पाना चाहते हैं, तो विफल होते रहते हैं। आचरण हमें सीधा सहारा नहीं देता, सीधा सहारा तो संसार या प्रभु देते हैं, किन्तु आचरण ही वह मूल है जो अन्यों से सहारा दिलवाता है।

प्रभु की कृपा है कि उसने हमें आचरण के लिए आवश्यक सभी साधन दे रखे हैं। शरीर, इन्द्रियां, मन, बुद्धि, ज्ञान, प्रकृति आदि सब हमारे आचरण के सहयोगी रूप में बनाये हैं। मात्र आचरण का सहारा पकड़ने से सारे सहारे हमारा स्वागत करने लगते हैं। हमें ससम्मान सहारा मिलता है, श्रद्धा व प्रेम से सहारा मिलता है। आचरण का सहारा सब सहारों की कुंजी है, सब सहारों का मूल है। यह आचरण स्वाश्रित है, हम स्वतन्त्रता से अपना आचरण तो अच्छा रख ही सकते हैं।



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