बुधवार, 6 मार्च 2013

जिन्होंने सजाये यहां मेले


आध्यात्मिक चिन्तन के क्षण...........

आचार्य सत्यजित् जी
ऋषि उद्यान, अजमेर

प्रभु कृपा से हमें यह अति सुन्दर संसार मिला है, अति सुन्दर मानव शरीर मिला है। पशु-पक्षी भी बहुत सुन्दर हैं, हर प्राणी विशेष रंग-रूप  का मिला है। पेड़-पौधे-लताएं भी अपना-अपना रंग-रूप  लिए शोभायमान हैं। इन सब सजी-सजाई वस्तुओं के बीच मानव जिन वस्तुओं का निर्माण करता है, वे भी व्यवस्थित व सुन्दर होनी चाहिएं। सुन्दरता, सजावट, व्यवस्था अच्छी लगती है, सुन्दरता होनी भी चाहिए। प्रभु निर्मित सुन्दर प्रकृति के बीच मानव निर्मित वस्तुएं भी सुन्दर होनी चाहिएं।

प्रभु निर्मित सुन्दर प्रकृति को देखकर साधक के मन में इसके निर्माता व स्वामी प्रभु के प्रति श्रद्धा-प्रेम-सत्कार उभरते हैं। मानव निर्मित सुन्दर वस्तु को देखकर उसके निर्माता व स्वामी का बड़प्पन मन में आता है, प्रशंसा का भाव उभरता है, प्रशंसा के बोल निकलते हैं। इससे निर्माता व स्वामी को सुख मिलता है, वह आत्मगौरव अनुभव करता है। इस सुखद अनुभव के मिलने पर हम उसे पुनः पुनः पाना चाहते हैं। यह सुखद अनुभव जिस सौन्दर्य के कारण मिला था, उसे अधिकाधिक बढ़ाना चाहते हैं, बार-बार करना चाहते हैं। अब यह सजावट-सौन्दर्य का सुख व्यसन-लत का रूप ले लेता है। सजावट-सौन्दर्य करने में विशेष प्रयत्न करना होता है, समय-श्रम-धन को अधिक लगाना पड़ता है। समय-श्रम-धन हमारे पास सीमित है, जब वह सजावट-सौन्दर्य में लगता है तो अन्य आवश्यक उपयोगी वस्तुओं-कार्यों में कम होता चला जाता है।

प्रभु ने सृष्टि सुन्दर बनाई, सजाई, उसकी अनन्त सामर्थ्य है, वह कितना भी कैसा भी सौन्दर्य रच सकता है, इससे उसे कोई हानि भी नहीं होती। पुनरपि प्रभु का दिया समस्त सौन्दर्य, समस्त सजावट उपयोगिता को साथ में लिए हुए हैं, सार्थकता को साथ में लिए हुए हैं। प्रभु-निर्मित सौन्दर्य व सजावट में कुछ व्यर्थ नहीं है। सौन्दर्य-सजावट से मन में प्रसन्नता-उत्साह का आना, मन का रसमय होना भी एक प्रयोजन है, किन्तु जब हम मात्र सुख के लिए इस सौन्दर्य-सजावट को बढ़ाने लगते हैं, तो बाधाएं-दुःख उत्पन्न होने लगते हैं, समय-श्रम-धन का दुरुपयोग होने लगता है। बहुमूल्य जीवन सजावट-सौन्दर्य की क्रीड़ा में खेल में गंवाना अच्छा लगता रहता है। अन्यों की प्रशंसा के बीच हमें यह सदा हितकर ही लगता है, इससे हो रही हानि पर विचार करने का अवसर कोई-कोई ही निकाल पाता है।

प्रभुकृपा से प्राप्त इस सजे-सजाये सुन्दर संसार को उपयोगिता की उपेक्षा कर के और अधिक सजाते जाना, मेले सजाना हमें दूसरे मार्ग पर ले जाकर उस मार्ग से भटका देता है, जिस पर हमें जाना था। सजावट-प्रशंसा की कोई सीमा नहीं है, कितना भी समय-श्रम-धन इसके लिए लगाया जाए वह कम प्रतीत होने लगता है। आखिर क्यों हम ऐसे मेले सजाते चले जाना चाहते हैं ? इससे हमारा कितना हित-अहित होता है, यह साधक के लिए चिंतनीय विषय है। विचारशील मानव, अध्यात्म की ओर झुका साधक अधिकाधिक सादगी अपनाता जाता है। प्रभु ने पहले से ही सब कुछ बहुत सुन्दर बनाया है, वह उसी से तृप्त होता है, उसे ही पर्याप्त समझता है। प्रभु द्वारा दिये सौन्दर्य को बचाये रखने का तो प्रयास होना चाहिए। स्नान, व्यायाम-सफाई आदि आवश्यक हैं, किन्तु बाल काले करना आदि अनावश्यक सजावट मार्ग से भटका ही देती है। प्राकृतिक परिवर्तन का भी अपना सौन्दर्य है, उसका अनुभव सहज-सरल है, उसके लिए समय-श्रम-धन का व्यय नहीं होता।

प्रभु ने बाह्य सौन्दर्य के अतिरिक्त आन्तरिक सौन्दर्य भी दिया है। मन-बुद्धि अद्भुत हैं। इनका सौन्दर्य अद्भुत सुख-सन्तोष को देता है। बाह्य सौन्दर्य से प्राप्त सुख अल्प मात्रा व अल्प समय तक रहता है, आन्तरिक सौन्दर्य अधिक मात्रा व अधिक समय तक रहता है, वह अनुपमेय है। आन्तरिक सौन्दर्य के आते जाने के साथ ही बाह्य वस्तुओं का सौन्दर्य भी बढ़ता जाता है, वे ही बाह्य वस्तुएं बहुत अधिक सुन्दर दिखने लगती हैं। इससे प्रभु के प्रति और अधिक श्रद्धा-प्रेम-सत्कार का भाव आता जाता है। बाह्य वस्तुओं को सजाने का यह आध्यात्मिक उपाय है, आन्तरिक उपाय है।

प्रभु ने मन को सुन्दर-शुद्ध ही दिया था, उसे हम और अधिक नहीं सजा सकते। हमें अपने मलिन मन को मात्र साफ करना है। यह सफाई ही उसकी सुन्दरता को प्रकट कर देती है। सफाई करके हम नई सुन्दरता नहीं लाते हैं, नई सुन्दरता लाने का प्रयास व्यर्थ व अनावश्यक है। प्रभु प्रदत्त सजे-सजाये मेले को अपने बड़प्पन के लिए और सजाना, नये-नये मेले सजाना सुख के साथ दुःख की शृंखला को भी ले आता है। जिन्होंने सजाये यहां मेले, सुख-दुःख संग-संग झेले। जिन्दगी, कैसी है पहेली हाय! कभी ये हंसाये, कभी ये रुलाये। आध्यात्मिक व्यक्ति जिन्दगी को पहेली नहीं रहने देता, वह इसे सुलझा लेता है, वह आध्यात्मिक चिंतन द्वारा इसे समझ लेता है, वह मेले नहीं सजाता, वह तो मात्र मैल हटाने में लगा रहता है।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें