शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2016

नया दिन - नया जीवन

आध्यात्मिक चिन्तन के क्षण..............

आचार्य सत्यजित् जी
ऋषि उद्यान, अजमेर (राजस्थान)

प्रभुकृपा से हमें प्रगति के उत्तम साधन प्राप्त हुए हैं। उत्तम शरीर, उत्तम इन्द्रियां, उत्तम मन, उत्तम बुद्धि, उत्तम ज्ञान न्यूनाधिक मात्रा में कर्मानुसार उपलब्ध हैं। यदि हमारे पूर्वकर्मानुसार ये साधन कुछ कम उत्तम व कुछ विकृत भी मिले हैं तो भी, इन्हें अधिक उत्तम बनाने व सुधारने का सामर्थ्य-अवसर भी हमें मिला है। ईश्वर ने मुक्ति से लौटी आत्माओं को तो समान ही साधन व अवसर दिये थे। उन साधनों व अवसरों में उत्तम बनने-बनाने की उत्तम सामर्थ्य भी दी थी, इसलिये वे समान व सामान्य होते हुए भी उत्तम थे। सर्वज्ञ व सर्वशक्तिमान् अनुपम प्रभु की यह कृपा भी अनुपम व उत्तम ही थी। प्रभु ने कर्म की स्वतन्त्रता के अनुपम अवसर को देकर इसमें चार चांद लगा दिये।

प्रभुकृपा से अनुपम साधनों से भरी सृष्टि भी मिली। उसके उपयोग व कर्म के अनुसार हमने संस्कार व कर्माशय बनाये, फलतः तदनुरूप साधनों व अवसरों की न्यूनाधिकता भी हुई। साधनों व अवसरों की कितनी भी न्यूनता हो पुनरपि नया कर सकने की संभावना व सामर्थ्य के कारण और अवसर उत्तम व अनुपम हैं। अल्पज्ञ अल्पशक्तिमान् आत्मा चाहे जितनी त्रुटि कर दे, चाहे जितना बड़ा दोष कर दे, उसे फल (दण्ड) भोगने के रूप में पुनः सुधार व प्रगति का अवसर सदा मिलता रहता है। प्रभु की यह सर्वोच्च कृपा है।

पिछले दिनों या पिछले जीवन में हमने क्या-क्या गलत कर डाला, यह विचार दुःखदायी होता है। स्वकृत पापकर्मों की स्मृति से दुःख होना, उन्नति का द्योतक है। हमारे दोष की प्रसिद्धि होने से हमें बड़ा कष्ट होता है, अन्यों के हमारे साथ व्यवहार बदल जाते हैं, यह भी हमारे सुधार व प्रगति में बहुत सहायक है। पिछले क्षण जो दुष्कर्म किया, वह हमारी लज्जा का कारण होते हुए भी नये पुरुषार्थ व आत्मविश्वास की भूमिका बनाता है।

पतित आत्मा को भी प्रभुकृपा से फल-भोग के बाद सदा नये अवसर दिये जाते हैं। पिछला दिन व पिछला जीवन कितना भी बुरा हो, कितना ही निन्दनीय हो, कितना भी अपयश देने वाला हो, कितना भी लज्जित करने वाला हो, पर नया दिन व नया जीवन सदा नई आशा व अवसर लेकर आता है। वह उन्मुक्त होकर कहता है-‘हे आत्मा ! मैं तेरे सामने खड़ा हूँ, तू मेरा जितना अधिक व जितना अच्छा उपयोग कर सकता है, कर ले। मैं तुझे किंचित् भी नहीं रोकूंगा, किंचित् भी नहीं टोकूंगा, उठा ले लाभ जितना तू उठाना चाहता है’। पिछला दिन कैसा भी हो, पर नया दिन पूर्णतः नया है। पिछला दिन हमने व्यर्थ कर दिया हो तो भी, नया दिन पुनः सार्थक करने के लिए मिल गया है।

प्रभुकृपा से हम पिछले कटु-अनुभवों को एक ओर रख कर, उससे पीडि़त ही न होते जाते हुए, उससे शिक्षा-अनुभव का लाभ लेकर नया जीवन नये सिरे से आरम्भ कर सकते हैं। नये दिन को मधुर-अनुभव वाला बना सकते हैं। नया दिन नये संतोष का कारण बन सकता है। पिछले अनुभव का लाभ लेकर नये दिन पुनः पुरुषार्थ किया हो, तो वह पुरुषार्थ मात्र भी परम संतोष देने वाला होता है, परिणाम भले ही कुछ भी हुआ हो। यदि नये दिन में भी त्रुटियां हो गईं, तो भी सीख व अनुभव तो दे ही गईं। प्रभुकृपा से नया दिन पुनः प्राप्त होगा। पुनः नया अवसर मिला है तो पुनः प्रगति की जा सकती है, पुनः सुधार किया जा सकता है। 

नये अवसर का मिलना, नये जीवन का मिलना है। नये जीवन का मिलना, नये अवसर का मिलना है। नया दिन एक नया जीवन है। इस नये जीवन को और अधिक उचित रीति से जीना है। नये दिन को नया जीवन बनाना है। प्रभु की कृपा है कि उसने हमें ऐसी सामर्थ्य दी है, हमें उस सामर्थ्य का सदुपयोग करना है। नया दिन नया जीवन बनने को सज्जित है, प्रभु की कृपा हमें आज भी उपलब्ध हो रही है।

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