गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

ध्यान-सुख, एकान्त सुख

आध्यात्मिक चिन्तन के क्षण..............

आचार्य सत्यजित् जी
ऋषि उद्यान, अजमेर (राजस्थान)

प्रभु-कृपा से हमें अनेक सुख प्राप्त हैं। हम भी सुख ही चाहते थे। ईश्वर ने अनेकविध सुखों को अनेक वर्षों तक अनेक बार मिलते रहने की व्यवस्था कर रखी है। हम भी प्रतिदिन अनेक सुखों को प्राप्त कर संतुष्ट होते रहते हैं। यह सुख हमारे अनुकूल होता है। इस अनुकूलता को पाकर हमें उसका सदुपयोग करना होता है, उसे हम करते भी रहते हैं। प्रत्येक सुख व अनुकूलता की अपनी-अपनी आवश्यकता व उपयोगिता है।
प्रभु-कृपा से हमें अनेक सुख इतने सुलभ व सुज्ञेय हैं कि छोटा बच्चा, किशोर व नवयुवक भी बिना बताये-सिखाये इन्हें प्राप्त कर सकता है। अनेक सुख दूसरों के बताने-सिखाने पर हमें सरलता से मिलने लगते हैं। किन्तु ये सुख प्रायः स्थूल होते हैं, बाह्य-स्थूल द्रव्यों के सम्पर्क से प्राप्त होते हैं, बाह्य इन्द्रियों से इन्हें सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। प्रभु-कृपा से ये बहुत सरल व सहज हैं। क्योंकि जीवन जीने के लिये ये आवश्यक हैं, अतः प्रभु ने अतिकृपा कर इन्हें सर्वसुलभ बनाया है।
प्रभु ने कृपा करके इन अनेक सुखों के अतिरिक्त भी सुख पाने की व्यवस्था हमारे लिये कर रखी है। ये सूक्ष्म हैं, आन्तरिक हैं, अन्तःकरण से ग्राह्य हैं। बाह्य-स्थूल पदार्थों से निरपेक्ष होकर इन्हें पाया जा सकता है। इन सूक्ष्म-सुखों को प्रभु ने अत्यन्त आह्लादकारक बनाया है। ये सूक्ष्म-सुख बिना खर्चे से प्राप्त होते हैं, जितना चाहें उतने मिलते हैं, अधिक देर तक मिलते हैं व सर्वत्र मिलते हैं। बाह्य-स्थूल सुखों की अपेक्षा इनमें बहुत अधिक स्वतन्त्रता है, बंधन व हानि की संभावना नगण्य है।
प्रभु की महती कृपा से हमें अनेकविध सुख प्राप्त हैं। किन्तु हम बाह्य-स्थूल सुखों में अधिक समय-श्रम लगा देते हैं। आन्तरिक-सूक्ष्म-सुखों के लिये हमारे माव समय-श्रम बच ही नहीं पाता है। यदि हम पूरी कामना से कुछ समय एकान्त के लिये निकाल सकें, तो आन्तरिक-सूक्ष्म-सुख का रसास्वादन मिलते ही फिर इसे नहीं छोड़ पायेंगे। फिर तो जब भी समय मिलेगा या एकान्त में या भीड़ में, कहीं भी इस आन्तरिक-सूक्ष्म-सुख को लेने में समर्थ होते जायेंगे। प्रभु-कृपा से यह अभ्यास हमें कुशल बना देता है।
प्रभु की अनेकविध कृपा का भरपूर लाभ उठाने की सामथ्र्य को पाना हमारा अधिकारा है। अधिकार के लिए कुछ कत्र्तव्य करने होते हैं। प्रभु-कृपा से हम यह कर सकते हैं। एकान्त-सुख या कहें ध्यान-सुख लेने में कुशल होने पर ज्ञात हो जायेगा कि यह सुख अधिक सरल, अधिक सहज और अधिक अनुकूल है। इस सुख को पाने पर ही वास्तविक आध्यात्मिक प्रगति आरम्भ होती है। प्रभु ने कृपा कर सब साधन दे दिये हैं। हम उनका उपयोग भी कर सकते हैं। प्रभु द्वारा दिखाया मार्ग परम कल्याणकारक है, उसके द्वारा प्रदत्त साधन सदा परम कल्याणकारक हैं।

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