शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

अमूल्य जीवन

आध्यात्मिक चिन्तन के क्षण..............
आचार्य सत्यजित् जी
ऋषि उद्यान, अजमेर (राजस्थान)

     प्रभुकृपा से यह मानव शरीर मिला। प्रगति का अद्वितीय अवसर। मुक्ति के बारे में कुछ सोचने-करने का एक मात्र अवसर। एक दुर्लभ अवसर जो चित्त-शुद्धि का अवसर प्रदान करता है, ऐसा अवसर जो योग-साधना जैसी पवित्र प्रक्रिया को जानने-समझने-करने के लिये समर्थ है।
    यह सब जानते-समझते हुए भी हम इस दिशा में अल्प प्रयत्नशील हैं। बार-बार भावनापूर्वक प्रयास करते हुए भी पुनः पुनः शिथिल हो जाते हैं। मानव-जीवन को प्रभुकृपा मानते हुए भी ईश्वर के प्रति बहुत कम कृतज्ञ हो पाते हैं। प्रभुकृपा को स्वीकारते हुए भी उसकी अति शुभ व सर्वथा कल्याणी वाणी-उपदेश के प्रति गंभीर नहीं रह पाते हैं। प्रगति का अद्वितीय अवसर पाकर भी इससे वह अद्वितीय प्रगति नहीं कर पाते, जो परमपिता परमात्मा हमसे चाहता है। परमपिता परमात्मा की हम पुत्रों-आत्माओं से अपेक्षा है कि हम संपूर्ण दुःखों से दूर होकर ईश्वरीय नित्य-आनन्द को प्राप्त करें। यह अद्वितीय मानव-जीवन अद्वितीय न रहकर द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ स्तर का बन गया है, क्योंकि हम द्वितीय-तृतीय-चतुर्थ या और भी निचले स्तर के कार्यों-लक्ष्यों को ध्यान में रख कर जीवन बिताने लगे हैं।
      प्रभुकृपा से मुक्ति के लिये मिले इस एक मात्र अवसर मानव-जीवन को हम एक मात्र मुक्ति के लिये न सोचकर अन्य सामान्य प्रयोजनों के लिये बिताये चले जा रहे हैं। यह दुर्लभ अवसर चित्त-शुद्धि के लिये न होकर चित्त-विकृति के लिये उपयोग में लिया जा रहा है। लौकिक व्यवहारों में आसक्त होकर हम अनजाने ही चित्त को अत्यधिक अशुद्ध किये जा रहे हैं। थोड़ी बहुत की जाने वाली शुद्धि की क्या सार्थकता रह जाती है, जब हम उससे बहुत अधिक अशुद्धि बटोरते जा रहे हैं।
     प्रभुकृपा से योग-साधना के प्रति श्रद्धा व आदर का भाव रखते हुए भी, इसे श्रेष्ठ मानते हुए भी, इसे सुख-शान्ति-धैर्य-संतोष-तनाव रहित अवस्था की प्राप्ति का उपाय मानते हुए भी इसकी उपेक्षा करते चले जा रहे हैं। दिन-भर में मिले समय में से अत्यल्प समय योग-साधना के लिये दे रहे हैं।
     प्रभुकृपा से हम इस दिशा में कुछ सोचना भी आरम्भ कर दें, तो जीवन में पवित्रता-शांति-संतोष का अवतरण होना ही है। कठिन दिखने वाली योग-साधना जीवन में उतरने लगेगी ही। प्रभु का दिखाया मार्ग अचूक है, अपवाद रहित है, परम-कल्याण-कारक है।

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