मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

कौन सफल है ?

भूमिकाः- आध्यात्मिक सफलता यानी मोक्ष प्राप्ति के मार्ग पर चल रहे व्यक्तियों में क्या विशेषत होती है, आचार्यवर यह बताते हैं:-
वानप्रस्थ साधक आश्रम रोजड के व्यवस्थापक देश-विदेश में योग व
 यज्ञ का प्रशिक्षण प्रदान कर ऋषि संस्कृति को स्थापित करने में प्रयत्नशील महान साधक
 आचार्य ज्ञानेश्वर जी आर्य कि प्रवचनमाला से संकलन
 
 व्यक्ति को प्रायः यह अनुभव होता है कि मैं उन्नति कर रहा हूँ, प्रगति कर रहा हूँ, पवित्र होता जा रहा हूँ। अतः वास्तविक उन्नति और विकास क्या है, इसका लक्षण क्या है, यह भी हमें समझना चाहिए।

जो व्यक्ति अधिकतम प्रसन्न रहता है, सन्तुष्ट रहता है, गंभीर रहता है, स्वतन्त्र रहता है, किसी भी प्रकार का भय, चिंता या आशंका उसको नहीं रहती है, उसके मन में द्वेष, वितर्क, संशय उत्पन्न नहीं होते हैं, रजोगुण, तमोगुण की प्रवृत्ति मन में उत्पन्न नहीं होती है, सहनशक्ति, धैर्य, सरलता, विनम्रता, और सेवाभाव उसके मन में बना रहता है, सत्य को, धर्म को, आदर्श को, न्याय को व्यक्ति शिरोधार्य करके चलता रहता है, मन में ईश्वर के प्रति प्रेम बना रहता है, कठिनाईयाँ, बाधायें उपस्थित होने पर भी वह उन आदर्शों और धार्मिक कार्यों को छोड़ता नहीं है, ऐसा व्यक्ति ही उन्नति करता है और वही सफल कहलाता है।

लक्ष्य के प्रति अग्रसर होना, आगे बढ़ते रहना, लक्ष्य प्राप्ति की गति तीव्र करना, बाधाओं से बचना और समस्याओं का समाधान करना, एक सीमा तक व्यक्ति के अपने हाथ में है।

पहले व्यक्ति के जीवन के लक्ष्य का निर्धारण हो जाता है कि - ये मेरा लक्ष्य है। वह उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सर्वात्मना समर्पित होकर के चलता है तो सांसारकि प्रतिकूलतायें, सांसारिक बाधायें, सांसारिक विरोध, सांसारिक कठिनाईयाँ उसके सामने कुछ भी नहीं होती हैं। वह पूर्ण आत्मविश्वास के साथ ईश्वर से शक्ति, ज्ञान, बल और आनंद को प्राप्त करते हुए आगे बढ़ता रहता है। वह भी बिना भय, संशय, शंका, लज्जा उप्तन्न किये हुये।

अनेक बार देखने में आता है कि व्यक्ति दिन में इतना असावधान होता है, इतना तमोगुण, रजोगुण से युक्त रहता है, उसमें इतनी अधिक सकामता और स्वार्थ की वृत्ति रहती है, इतनी इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति होती है, उसके व्यवहारों में, विचारों में इतनी जड़ता रहती है कि ऐसे व्यक्ति को धार्मिक, परोपकारी, ईश्वरभक्त, आध्यात्मिक और योग मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति नहीं मान सकते।

आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति लौकिक वृत्तियों (व्यवहारों) से अत्यन्त विलक्षण (अलग तरह का) होता है। लौकिक व्यक्ति बाह्य चिन्हों के माध्यम से, बाह्य लक्षणों से, बाह्य क्रियाकलापों से कितना ही अपने आप को धार्मिक, आध्यात्मिक प्रकट करने का प्रयास करे, अन्दर से तो वो होता लौकिक ही है। सामान्य रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व का, उसमें मौजूद आध्यात्मिकता का पता नहीं चलता है। हां, जो व्यक्ति उसके निकट में रह रहा है, वह उसके हाव-भाव को, उसके विचारों को और क्रियाओं को ठीक प्रकार से सुनकर के, समझकर के, जानकर के कुछ थोड़ा पता लगा सकता है अन्यथा व्यक्ति की आध्यात्मिकता का, निष्कामता का, ऐषणारहित मनोस्थिति का, उसकी विवेकयुक्त स्थिति काया लौकिक प्रयोजन से रहित मनःस्थिति का सामान्य ज्ञान नहीं हो सकता। वह इसका पता लगा ही नहीं सकता। इतना होने पर भी यह निश्चित है कि दूसरे व्यक्ति हमारा निर्धारण करें या नहीं करें, किन्तु हम अपना निर्धारण जरूर कर सकते हैं कि हमारी क्या स्थिति है, हम किस दिशा में बढ़ रहे हैं।
साभार:- श्री राधावल्लभ चोधरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें