01. जब उत्तम-उत्तम उपदेशक होते हैं तब अच्छे प्रकार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सिध्द होते हैं / और जब उत्तम उपदेशक और श्रोता नहीं रहते तब अंध परम्परा चलती है / फिर भी जब सत्पुरुष होकर सत्योपदेश होता है. तभी अंध परम्परा नष्ट होकर प्रकाश की परम्परा चलती है .
02. मनुष्य लोग अपनी विद्या और उत्तम क्रिया से जिस यज्ञ का सेवन करते हैं उससे पवित्रता का प्रकाश, पृथिवी का राज्य, वायुरूपी प्राण के तुल्य राजनीति, प्रताप, सब की रक्षा, इस लोक और परलोक में सुख की वृध्दि, परस्पर कोमलता से वर्तना ओए कुटिलता का त्याग इत्यादि श्रेष्ठ गुण उत्पन्न होते हैं इसलिए सब मनुष्यों को परोपकार तथा अपने सुख के लिए विद्या और पुरुषार्थ के साथ प्रीतिपूर्वक यज्ञ का अनुष्ठान नित्य करना चाहिए.
सत्यार्थ प्रकाश
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