शनिवार, 9 मई 2015

01- शतपथ सुभाषित (कल की उपासना मत कर)

लेखक 
स्वर्गीय आचार्य वेदपाल जी 'सुनीथ'

संसार में बहुत थोड़े से मनुष्य ऐसे होंगे, जिनकी अन्तर आत्मा में अपने कल्याण के भाव न उठते हों। प्रायः सभी व्यक्ति कभी न कभी अवश्य सोचते हैं कि कल से अपनी इस बुराई को छोड़ दूंगा, अथवा कल से अमुक भद्रता को धारण करूंगा।
शराबी कभी कभी विचारता है कि मैं कितना पाप कर रहा हूँ। सब कुछ नष्ट कर रहा हूँ, स्त्री, बच्चे परेशान हैं, भूखे हैं, गांव मुहल्ले में कोई इज्जत नहीं, धर्म खो दिया, बस अब शराब नहीं पीऊँगा।
जुआरी जब जुए में हार कर आता है तो उसकी प्यारी पत्नी उसे कोसती है, उसके अपने बच्चे उसे घृणा से देखते हैं तो सोचता है, मैं कितना पापी हूँ उसकी अन्तरात्मा कह उठती है अब आगे इस पाप कर्म को नहीं करूंगा।
व्यभिचारी की गति भी ऐसी ही है। देखिये यह चोर जा रहा है, होथों में हथकडि़यां हैं। मुंह नीचे लटका रहा है। सड़क पर चलने वाला प्रत्येक व्यक्ति उसे घृणा से देख रहा है। अब चोर मन ही मन कह रहा है ओह भूल की मैंने, मेहनत की रोटी खाता, इज्जत से चलता। बस इस बार छूट जाऊँ, आगे यह पाप नहीं करूंगा।
यह कल कल तथा आगे आगे की बात प्रायः सब के साथ लगी है। कोई बुराई को छोड़ने के लिए कल का आश्रय लेता है तो कोई अच्छाई को अपनाने के लिए।
ये देखिये ये एक श्रेष्ठी हैं। इनका जीवन धार्मिक है, इनमें  शराब चोरी आदि का कोई व्यसन नहीं है, आयु साठ वर्ष के आसपास है, बच्चे व्यापार में लगे हुए हैं, धन की कोई कमी नहीं है, कहने को सब कुछ है। हमने लाला जी से पूछा-आप का जीवन बहुत अच्छा है भगवान ने सब कुछ आप को दिया है। हमारे प्रश्न को सुनकर लालाजी कुछ सोचकर बोले-आप ठीक कह रहे हैं, परन्तु धन दौलत, पुत्र पौत्र कब तक साथ रहेंगे, यह तो सब कुछ एक दिन छूट जाएगा। अब तो बस ईश्वर का ध्यान लगाना चाहिए। माया मोह को छोड़ना चाहिए। सोचता हूँ कल से नियमित ईश्वरोपासना आरम्भ कर दूँगा। 
विचार करने से ज्ञात हुआ कि सांसारिक लोगों की आशाओ का केन्द्र बिन्दु कल है। ईश्वर का भक्त ईश्वर की नहीं, कल की उपासना में लगा हुआ है। उत्तम स्वास्थ्य का उपासक युवक भी व्यायाम को छोड़ कल की उपासना में लगा हुआ है।
कल की उपासना के इस विचित्र दृश्य को जब महर्षि याज्ञवल्क्य ने अपने अन्तः चक्षुओं से देखा तो उनके मुख से अनायास निकला-
न श्वः उपासीत को हि मनुष्यस्य श्वो वेद।
ओ संसार के लोगों! कल की उपासना में मत लगो, क्या कोई जानता है, तेरा कल आएगा वा नहीं ? प्रभु ने तुझे पैदा करते ही बताया था कि हे मनुष्य, तू अपने इस धन दौलत को सदा साथ देने वाले मत समझना। पता नहीं कब हवा चले और तू पीपल के पत्तों की तरह टूट कर पाप पुण्य से एकत्रित इस भौतिक सम्पत्ति से वंचित हो जाए।
इसलिए यदि तू महान् बनना चाहता है, कल्याण को प्राप्त करना चाहता है तो कल की उपासना को छोड़कर, आज की उपासना कर। जो आज बुराई नहीं छोड़ सकता उसके कल का क्या भरोसा। भला जो आज भद्र नहीं कर सकता उसके कल की भी क्या आशा।
महापुरुषों की सफलता का रहस्य यही है कि वे जानते ही तत्काल दुरितों को छोड़ देते हैं और भद्र को धारण कर लेते हैं।
बस देवगण अद्य प्रिय हैं तो मनुष्य श्वः प्रिय हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें